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Tuesday, March 21, 2023

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What Is The MoP Memorandum Of Procedure For The Next CJI How Is India’s Top Judge Chosen


Memorandum Of Procedure For Next CJI: सरकार ने शुक्रवार (7 अक्टूबर) को भारत के मुख्य न्यायाधीश-सीजेआई  (Chief Justice of India-CJI) यू यू ललित (UU Lalit) से अपने उत्तराधिकारी का नाम बताने को कहा. दरअसल सीजेआई  ललित 8 नवंबर को सेवानिवृत्त हो रहे हैं. उनके बाद बेंच के दूसरे सबसे वरिष्ठ न्यायाधीश जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ (Justice D Y Chandrachud) हैं.

सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठतम न्यायाधीश सीजेआई बनते हैं. सीजेआई ललित की  सिफारिश और राष्ट्रपति के नियुक्ति किए जाने के बाद जस्टिस चंद्रचूड़ भारत के अगले मुख्य न्यायाधीश के पद पर आसीन होंगे. वह दो साल से कुछ अधिक वक्त तक इस पद पर रहेंगे और 10 नवंबर, 2024 तक रिटायर होंगे. सीजेआई चुने जाने तक का सब काम  मेमोरेंडम ऑफ प्रोसीजर-एमओपी (MoP) के तहत होता है. यहां हम आपको एमओपी के बारे में बताने की कोशिश कर रहे हैं.

कानून मंत्री ने सीजेआई को क्यों लिखा लेटर?

भारत सरकार ने सीजेआई यूयू ललित से उनके उत्तराधिकारी के लिए सिफारिश मांगी  है. सरकार ने ऐसा कर भारत के  अगले सीजेआई की नियुक्ति की प्रक्रिया पर जोर दिया है. सरकार ने सीजेआई से ये सिफारिश एमओपी के तहत मांगी है. उच्च न्यायपालिका (Higher Judiciary) के सदस्यों की नियुक्ति को नियंत्रित करने वाली प्रक्रिया को ही  मेमोरेंडम ऑफ प्रोसीजर- एमओपी (Memorandum Of Procedure-MoP) कहा जाता है. सरल शब्दों में कहा जाए तो ये जजों की नियुक्ति की प्रक्रिया है.

एमओपी में कहा गया है कि केंद्रीय कानून और न्याय मंत्री सही वक्त पर भारत के अगले मुख्य न्यायाधीश नियुक्ति के लिए देश के मौजूदा मुख्य न्यायाधीश (Chief Justice Of India) से सिफारिश की मांग करेंगे. एमओपी में सही वक्त की बात कही गई है, लेकिन ये सही वक्त (Appropriate Time)  मौजूदा सीजेआई  की सेवानिवृत्ति (Retirement) की तारीख से एक महीने पहले से शुरू हो जाता है. एक महीने पहले से ही अगले सीजेआई को चुने जाने की परंपरा रही है.

एमओपी  क्या है?

एमओपी (MoP) न्यायाधीशों की नियुक्ति पर सरकार और न्यायपालिका की सहमति से बनी नियमों की एक किताब है. यह एक महत्वपूर्ण दस्तावेज है. इसकी वजह है कि न्यायाधीशों की नियुक्ति की कॉलेजियम प्रणाली (Collegium System) एक नई न्यायिक पद्धति है जिसे लागू करना कानून या संविधान के जरिए अनिवार्य नहीं बनाया गया है. सुप्रीम कोर्ट के तीन फैसलों के आधार पर एक मानक के तौर पर एमओपी विकसित हुआ है. इसे  फर्स्ट जजेज केस-1981 ( First Judges Case 1981), सेकेंड जजेज केस (1993) और थर्ड जजेज केस (1998) के नाम से जाना जाता है. ये तीनों फैसले न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए एक समान पद चयन प्रक्रिया का आधार बनते हैं. एमओपी का खाका पहली बार 1999 में खींचा गया था.

सुप्रीम कोर्ट ने 16 अक्टूबर 2015 को  संवैधानिक संशोधन ((99वां संशोधन) के जरिए लाए गए राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग-एनजेएसी (National Judicial Appointments Commission-NJAC) कानून को रद्द करने का फैसला सुनाया था. एससी के इस फैसले के बाद एसी में न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम प्रणाली दोबारा से जीवित हो उठी थी. साल 2014 के एनजेएसी कानून में जजों की नियुक्ति के 22 साल पुराने कॉलेजियम सिस्टम को खत्म कर दिया गया था. एनजेएसी में सुप्रीम कोर्ट में न्यायाधीशों की नियुक्तियों की प्रणाली को बदलने की मांग की थी. दरअसल एनजेएसी का ये कानून सुप्रीम कोर्ट की जजों की नियुक्ति प्रक्रिया में सरकार के दखल के दरवाजे खोलता था. इसके बाद साल 2016 में इस पर फिर से बातचीत की गई थी. भले ही एमओपी की कुछ धाराओं (Clauses) पर लगातार सरकार और एससी दोनों ही में मतभेद रहे हैं, लेकिन आम तौर पर बाकि बचे एमओपी पर दोनों पक्ष एकमत हैं. 

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