6.5 C
New York
Saturday, March 25, 2023

Buy now

spot_img

Gujarat Assembly Elections No Strategy And No Leaders, Why Congress Is Missing From The Field ABPP


गुजरात में आगामी नवंबर-दिसंबर महीने में चुनाव होना है. यहां पिछले 27 साल से बीजेपी का राज है और इस बार इस विधानसभा चुनाव पर सबकी नजरें लगी हुई है. चुनाव के मद्देनजर सभी पार्टियों की तैयारियां जोरों पर चल रही है. एक तरफ जहां चुनावी समर में सभी राजनीतिक दल अपनी पूरी ताकत झोंक चुके हैं. वहीं दूसरी तरफ देश की सबसे बड़ी प्रमुख विपक्षी पार्टी कांग्रेस उस तरीके से चुनाव प्रचार नहीं कर रही है. कांग्रेस के इस नरम रुख को देखकर सवाल उठने शुरू हो गए हैं कि आखिर पार्टी की इस चुप्पी के पीछे क्या कारण है.

दरअसल ये सवाल इसलिए भी उठ रहा है क्योंकि बीजेपी की ओर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह से लेकर तमाम बड़े नेता और सांसद गुजरात के चुनाव के लिए लगातार रैलियां कर रहे हैं. बीजेपी के अलावा आदमी पार्टी भी जमकर अपने प्रचार में लगी है. अरविंद केजरीवाल से लेकर उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया तक सभी राज्य में जनता से जुड़ने का एक भी मौका नहीं छोड़ रहे हैं. आप के तमाम सांसद भी गुजरात के चुनावी मैदान में जनता के बीच पहुंच चुके हैं. 

इन पार्टियों के अलावा असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी भी राजनीतिक माहौल को भांपते हुए चुनावी मैदान में आ गई है और रैलियों के जरिए जनता के बीच अपनी बात रखनी शुरू कर दी है. 

लेकिन इस चुनावी माहौल में कांग्रेस की ओर से अभी तक अन्य राजनीतिक दलों की आक्रामक रैलियां और बड़े नेताओं का राज्य में दौरा और बैठकों का सिलसिला शुरू नहीं हुआ है. दिलचस्प बात ये है कि गुजरात राज्य राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा का हिस्सा भी नहीं है. हालांकि ये यात्रा गुजरात चुनाव के खत्म होने के एक महीने बाद तक चलती रहेगी.

ताज़ा वीडियो

कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने हाल ही में संवाददाताओं से बातचीत में दावा किया था कि अगले साल गुजरात के पोरबंदर से अरुणाचल प्रदेश तक भारत जोड़ो यात्रा जैसी ही एक यात्रा होगी. लेकिन जब यह यात्रा शुरू होगी, उससे काफी पहले ही गुजरात का चुनाव हो चुका होगा.

हालांकि कांग्रेस ने फैसला किया है कि वह गुजरात में आगामी विधानसभा चुनाव को राहुल गांधी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच का मुकाबला नहीं बनने देगी. बल्कि वह बीजेपी के स्थानीय नेतृत्व के खिलाफ अपनी प्रचार मुहिम को केंद्रित करेगी, क्योंकि उसे लगता है कि बीजेपी के पास स्थानीय स्तर पर कोई मजबूत नेता नहीं है. मुख्य विपक्षी दल ने राज्य में मुख्यमंत्री पद के लिए अपना कोई उम्मीदवार घोषित नहीं करने की अपनी परिपाटी भी अमल करने का फैसला किया है. 

पुराने ग्राफ को बढ़ाने के लिए जूझ रही है कांग्रेस

गुजरात में 2017 की राजनीति परिस्थिति देखें तो उस वक्त कांग्रेस के पास हार्दिक पटेल जैसा चेहरा था. जो पाटीदार आंदोलन के चेहरे  के रूप में उभरे थे. हार्दिक पटेल का कांग्रेस के प्रचार प्रसार में शामिल होना समर्थन करना पार्टी के लिए काफी फायदेमंद भी साबित हुआ था. इसके बाद कांग्रेस ने हार्दिक पटेल को गुजरात इकाई का कार्यकारी प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त कर दिया. उन्हें दायित्व तो मिल गई लेकिन वो ताकत और स्वतंत्रता नहीं मिली जो एक पार्टी की राज्य इकाई के प्रमुख को मिलनी चाहिए थी.

 हार्दिक पटेल ने अपने दर्द भी साझा किया था. उन्होंने कहा था, “पार्टी (कांग्रेस) में उनकी हालत बिलकुल वैसी है, जैसी किसी दूल्हे की शादी के तुरंत बाद नसबंदी करा दी हो.”

इसके बाद मई महीने में पटेल ने कांग्रेस की कार्यकारी अध्यक्ष सोनिया गांधी को पत्र लिखकर पार्टी की अपनी प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा देकर कांग्रेस से अपने रास्ते अलग कर लिए थे. वहीं एक महीने बाद ही उन्होंने बीजेपी ज्वाइन कर लिया था. हार्दिक पटेल का कांग्रेस में नहीं होना पार्टी के बहुत बड़े झटके के रूप में देखा जा रहा है.

गुजरात के आदिवासी वोट बीते चुनाव में कांग्रेस को मिले थे. इस बार बीजेपी  ने विभिन्न योजनाओं को लागू कर अपने पाले में लाने की कोशिश की है. हालांकि चुनाव की घोषणा से पहले पीएम मोदी से पहले ही राहुल गांधी ने गुजरात में आदिवासियों के सम्मेलन में हिस्सा लिया था. लेकिन उसके बाद प्रधानमंत्री मोदी वे भी आदिवासियों की एक बड़ी रैली को संबोधित किया था. 

हालांकि कि पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी ने गुजरात चुनाव को लेकर एक टीम बनाई है जिसमें पी. चिदंबरम, मुकुल वासनिक, के.सी. वेणुगोपाल, रणदीप सिंह सुरजेवाला और अन्य नेता शामिल हैं.

इस टीम की बैठक में कांग्रेस की गुजरात इकाई के प्रभारी रघु शर्मा, पार्टी की राज्य इकाई के अध्यक्ष जगदीश ठाकोर, विपक्ष के नेता सुखराम राठवा, कांग्रेस की गुजरात इकाई के दो पूर्व अध्यक्षों अर्जुन मोढवाडिया और अमित चावड़ा और पार्टी प्रवक्ता मनीष दोशी ने हिस्सा लिया था. दोशी ने कहा, ‘‘दिल्ली में कांग्रेस की गुजरात इकाई के नेताओं के साथ कार्य बल की बैठक के दौरान आगामी विधानसभा चुनाव की तैयारी को लेकर एक विस्तृत रणनीति तैयार की गई.’’

पीएम मोदी को लेकर लिया ये फैसला

पार्टी सूत्रों ने बताया कि गुजरात चुनावों का संबंध केंद्र में सरकार के गठन या प्रधानमंत्री चुनने से नहीं है, इसलिए यह फैसला किया गया कि इन चुनावों को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बनाम कांग्रेस का मुकाबला नहीं बनने दिया जाना चाहिए. एक सूत्र ने कहा, ‘‘ये गुजरात के चुनाव हैं और हमारा मुकाबला मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल और बीजेपी की राज्य इकाई के अध्यक्ष सी आर पाटिल से है.’’

उसने कहा, ‘‘बीजेपी के लिए, प्रधानमंत्री मोदी तुरुप का इक्का हैं और वे उनके नाम पर वोट मांगेंगे. उनके पास राज्य स्तर पर कोई मजबूत नेता नहीं है, इसलिए वे चुनाव को मोदी बनाम कांग्रेस की लड़ाई में बदलने की कोशिश करेंगे, लेकिन मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री नहीं बनने वाले हैं. लोगों ने बीजेपी के मुख्यमंत्रियों के कुशासन को देखा है और कांग्रेस की लड़ाई उनके खिलाफ है.’’

कांग्रेस के वोट बैंक को तोड़ सकती है आप 

एक तरफ जहां कांग्रेस का रुख एकदम नरम नजर आ रहा है. वहीं दूसरी तरफ राज्य में आम आदमी पार्टी की सक्रियता को मद्दे नजर रखते हुए ये अनुमान लगाया जा रहा है कि यह पार्टी कांग्रेस के वोट बैंक को तोड़ सकती है. 

किसी राजनीतिक पार्टी की शक्ति होती है उस पार्टी की कार्यशैली, एक परिपक्व चेहरा और कार्यकर्ताओं का समर्पण, लेकिन वर्तमान में कांग्रेस के साथ तीनों ही नहीं है. गुजरात  में कांग्रेस की स्थिति की बात करें तो यह सिद्ध हो चुका है कि राज्य में यह पार्टी अधर में लटकी हुई है और विधानसभा चुनाव होने से पूर्व ही वो आत्मसमर्पण और हार का सामना कर चुकी है. इसके अलावा कांग्रेस का चेहरा विहीन होने से लेकर उसकी आखिरी उम्मीद भी धराशाई हो गई. 

अशोक गहलोत गुजरात से रह रहे हैं दूर

एक तरफ जहां गुजरात में पीएम मोदी समेत कई बड़े नेता लगातार वहां रैलियों का आयोजन कर रहे हैं. हजारों करोड़ रुपये की परियोजनाओं का शिलान्यास और उद्घाटन कर रहे हैं. अरविंद केजरीवाल भी इस राज्य के कई दौरे कर चुके हैं और आक्रामक तरीके से बीजेपी को टक्कर दे रहे हैं. 

वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस द्वारा राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को वरिष्ठ पर्यवेक्षक नियुक्त करने के बाद भी वह केवल 3 तीन दिन ही गुजरात में चुनावी रैली का आयेजन किया.

दरअसल गहलोत ने अगस्त महीने में तीन दिनों के लिए राज्य का दौरा किया था और सितंबर के पहले सप्ताह में राहुल के साथ अहमदाबाद पहुंचे थे. उस दौरान उन्होंने राज्य में मुफ्त बिजली, कृषि ऋण माफी, 10 लाख नई नौकरियों और पार्टी के सत्ता में आने पर कोविड प्रभावित परिवारों को मुआवजे सहित कई वादों की घोषणा की थी.

इसके बाद राहुल यात्रा शुरू करने के लिए कन्याकुमारी गए और गहलोत राजस्थान की राजनीति में उलझे रहें. गहलोत अब अपने ही खेल में इतने उलझे हुए हैं कि किसी को यकीन नहीं है कि वह गुजरात के पर्यवेक्षक के रूप में बने रहेंगे. 

इस साल के अंत में होगा चुनाव

राज्य की 182 सदस्यीय विधानसभा के लिए इस साल के अंत में चुनाव होने हैं. बीजेपी के समक्ष 24 साल से अधिक समय तक सरकार में बने रहने के बाद सत्ता विरोधी लहर को मात देने की कठिन चुनौती है.प्रियंका गांधी समेत कुछ शीर्ष नेताओं वाले कांग्रेस के कार्य बल ने आगामी विधानसभा चुनाव की रणनीति तैयार करने के लिए इस सप्ताह के शुरू में दिल्ली में गुजरात के नेताओं से मुलाकात की थी.

ये भी पढ़ें:

1962 का भारत-चीन युद्ध, जिसने विदेश नीति को नया आकार दिया, सुरक्षा नीति में हुए कई प्रमुख बदलाव



Source link

Related Articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Stay Connected

0FansLike
3,752FollowersFollow
0SubscribersSubscribe
- Advertisement -spot_img

Latest Articles