देवरिया टाइम्स
पवन मिश्रा जी के वाल से
हथुआ-भटनी रेललाइन परियोजना का निरस्त होना इत्तेफाक नहीं। लंबे समय तक किसानों के संघर्ष ने अफसरों को परियोजना के औचित्य पर विचार करने के लिए विवश कर दिया। गर्मी, जाड़ा व बरसात हर मौसम में निरंतर जन जागरूकता अभियान चलाना और अफसरों से टेबल टाक करना इनके रणनीति का हिस्सा रहा। मुआवजा को लेकर बात करनी हो या अपनी समस्याओं से अवगत कराना हो, किसानों ने बड़े ही शालीनता से अपनी बात रखी। लोकप्रिय जिलाधिकारी श्री अमित किशाेर ने उनके दुख-दर्द को समझा और परियोजना की समीक्षा की। फिर शासन में किसानों की बात को प्रमुखता से उठाया। जिसका नतीजा सुखद परिणाम के रूप में सामने आया। कई ऐसे मौके आए जब किसानों को लंबा आंदोलन करना पड़ा। भटनी के 115 नंबर रेलवे गेट पर 150 दिन तक अनिश्चितकालीन धरने पर बैठना पड़ा।इस लड़ाई में भूमि बचाओ किसान संषर्ष समिति के अध्यक्ष श्री त्रिगुणानंद मिश्र, किसान नेता श्री Shivaji Rai, श्री Chaturanan Ojha समेत कई लोगों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। किसानों की तरफ से उनको बधाई।

-किसानों के विरोध की यह रही वजह

1-किसानों का कहना था कि यह परियोजना न तो किसानों के हित में है, न ही सरकार के हित में। इसलिए वर्ष 2008 से विरोध शुरू किया गया। यह रेललाइन देवरिया से हथुआ के बीच योजना आयोग द्वारा 2005-06 में स्वीकृत हुआ, लेकिन पूर्व रेलमंत्री श्री लालू प्रसाद यादव ने फर्जी अभ्यावेदनों के आधार पर निजी हित में इसे हथुआ से भटनी जं. करा दिया, क्योंकि इस रेललाइन को श्री लालू प्रसाद यादव ने अपने गांव, ससुराल, बहन के गांव व साढू के गांव को जोड़ने के उद्देश्य से स्वीकृत कराया।
2-भटनी जं. से देश के सभी हिस्से में जाने के लिए ट्रेनें उपलब्ध हैं, गोपालगंज जिले के बार्डर से सटा होने के कारण लोग यहां आकर ट्रेन पकड़ते हैं। इसलिए नई रेललाइन परियोजना की कोई आवश्यकता नहीं है।
3-हथुआ से भटनी की सड़क मार्ग से दूरी करीब 40-45 किलोमीटर है, जबकि प्रस्तावित रेललाइन से यह दूरी करीब 80 किलोमीटर है। लोगों काे आने-जाने में अधिक समय व अधिक धन खर्च करना पड़ेगा।
4-रेललाइन निकलने से जिले के किसानों की करीब 112.49 एकड़ कृषि योग्य बहुफसली भूमि ली जा रही थी। जिसके कारण करीब एक हजार से अधिक लघु सीमांत किसान प्रभावित हो रहे थे। परियोजना से कई किसान भूमिहीन होते।
5-भटनी से सटे बह रही छोटी गंडक नदी और बिहार बार्डर पर बह रही खनुआ नदी के बीच 10 गांव स्थित हैं जो रेललाइन से प्रभावित हो रहे थे। जल निकासी की सुविधा न होने से ये सभी गांव हर हाल बरसात के सीजन में बाढ़ से घिरे रहते।6-किसानों एक खेमे ने रेलवे से चार गुना मुआवजा देने की शर्त रखी, लेकिन रेलवे ने चार गुना मुआवजा देने से इंकार कर दिया।