शहर के रामलीला मैदान में चल रहे रामकथा के आठवें दिन मानस मर्मज्ञ राजन महाराज ने भरत चरित्र की कथा का संगीतमय वर्णन किया। कहा कि इस मनुष्य जीवन में भाई व ईश्वर के प्रति प्रेम नहीं है तो यह जीवन पशु समान है। भरत और भगवान श्रीराम से भाई व ईश्वर से प्रेम की सीख लेनी चाहिए।

कहा कि जिसका मुख राम जी के चरणों की ओर हो वही भरत होगा और जो भरत जी के मुख को ताकता होगा वही श्रीराम होगा। वर्तमान समय में भरत चरित्र की बहुत बड़ी प्राथमिकता है, जिस स्वार्थ के कारण आज भाई-भाई जहां दुश्मन जैसा व्यवहार करते हैं, वहीं भरत चरित्र में त्याग, संयम, धैर्य और ईश्वर प्रेम भरत चरित्र का दूसरा उदाहरण है। भरत का विग्रह या स्वरूप श्री राम प्रेम मूर्ति के समान है। जिससे भाई के प्रति प्रेम की शिक्षा मिलती है। रामायण में भरत ही एक ऐसा पात्र हैं, जिसमें स्वार्थ व परमार्थ दोनों को समान दर्जा दिया गया है।